पहले से ही चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस (Congress) के लिए पुडुचेरी में सरकार का पतन उसकी सियासी मुसीबतें और बढ़ाएंगी. पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले लगे इस बड़े झटके से पार्टी की राजनीतिक परेशानियों में इजाफा तो होगा ही, साथ ही पिछले कुछ महीनों से जारी अंदरूनी असंतोष के एकबार फिर से मुखर होने की आशकाएं बढ़ गई हैं.
हालांकि, कांग्रेस का अभी भी मानना है कि वह आगामी चुनावों में सहानुभूति फैक्टर पर लाभ उठा सकती है. मगर, ज्यादातर पार्टी नेता इससे कोई इत्तेफाक नहीं रखते. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि नारायणसामी और पार्टी आलाकमान दोनों ने कुछ विधायकों को अति आत्मविश्वास में कम करके आंका. इसी अति आत्मविश्वास में कांग्रेस पार्टी ने पिछले साल मध्य प्रदेश में अपनी सरकार खो दी थी. कर्नाटक में यही हाल हुआ था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, पुडुचेरी संकट को लेकर सूत्रों को कहना है कि वहां 2018 में ही दूसरी पार्टी ने विधायकों को साधने की कोशिश शुरू कर दी थी. विधायक ई थेप्पनथन और विजेवेनी वी ने तत्कालीन स्पीकर वी वैथीलिंगम से इसकी शिकायत भी की थी. इसमें कहा गया था कि कांग्रेस के दो विधायक (एक एआईएडीएमके से और दूसरा एनआर कांग्रेस से) को दल बदलने के लिए मोटी रकम का ऑफर दिया गया था. सूत्रों के मुताबिक, स्पीकर को इसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग भी सौंपी गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन स्पीकर वी वैथीलिंगम ने ऑडियो रिकॉर्डिंग मिलने की बात भी कबूली है. उनके मुताबिक, इस मामले में पूछताछ भी की गई थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया था. फिर 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया. पुडुचेरी के एक कांग्रेस नेता ने बताया, ‘बाद में नए विधानसभा स्पीकर बनाए गए पी शिवकोलन्धु को भी ऑडियो रिकॉर्डिंग सौंपी गई थी. लेकिन उन्होंने इस मामले में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई.’
पार्टी के एक हाईकमान नेता ने कहा, ‘नमसिव्यम जैसे नेताओं को प्रमुख पोर्टफोलियो दिए गए थे. हम और क्या दे सकते हैं? अगर वह सीएम बनना चाहते थे तो उन्हें विधायकों का समर्थन मिलना चाहिए था. वह अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं.’ पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा, ‘बीजेपी, AIADMK और NR कांग्रेस के साथ गठबंधन में होगी.’
ऐसा लगता है कि कांग्रेस आलाकमान को इस बात का अंदेशा था कि पुडुचेरी में उसकी सरकार गिर जाएगी. पुडुचेरी में एक कांग्रेस नेता कहते हैं, ‘हमने कुछ समस्याओं का अनुमान लगाया था. हमें एक या दो लोगों के जाने का अंदेशा था. हमने सोचा कि चूंकि चुनावी माहौल है. इसलिए दूसरी पार्टी सरकार को पछाड़ना चाहती है. सरकार गिर जाएगी हमें इसका अंदाजा न हुआ.’ ये नेता आगे कहते हैं, ‘वैसे ये हमारे लिए यह कुछ मायनों में आगे चलकर लाभकारी हो सकता है. हमें एक बड़ा टॉकिंग पॉइंट मिल गया है. अब ध्यान केवल सरकार के प्रदर्शन पर होगा. अब हम इस सब के बारे में बात कर सकते हैं.’
वैसे सत्ता के लिहाज से पुडुचेरी का राजनीतिक प्रभाव चाहे बहुत ज्यादा न हो, मगर देश की सियासत में कांग्रेस के सिकुड़े आधार को देखते हुए पार्टी के मनोबल की दृष्टि से इसकी अहमियत थी. ऐसे में पार्टी की रीति-नीति और संगठन के संचालन को लेकर असंतोष की आवाज उठा रहे कांग्रेस के ‘जी 23’ के नेताओं के लिए पुडुचेरी का यह प्रकरण नेतृत्व पर दबाव बनाने का एक और मौका बन सकता है.
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इस साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें पुडुचेरी भी शामिल है. चुनाव में केवल दो-तीन महीने रह जाने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व अपनी सरकार नहीं बचा पाया. सरकार गिर जाने के बाद सूबे में पार्टी के टूटे मनोबल का असर अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव में भी पड़ सकता है. ऐसे में सूबे के चुनाव में पार्टी की चुनौतियां गहरी हो गई हैं.